ब्राह्मण शब्द व उनकी विश्लेषण

हारीत ऋषि ने सृष्टिकर्म का वर्णन करते हुए हारीत स्मृति मे पुरुषसूक्त के श्लोक को स्पष्ट करते हुए कहा है कि-

यज्ञ सिद्धयर्थमनवान्ब्राह्मणान्मुखतो सृजत।। सृजत्क्षत्रियान्वार्हो वैश्यानप्यरुदेशतः।। शूद्रांश्च पादयोसृष्टा तेषां चैवानुपुर्वशः।( १अ० १२/१३)

यज्ञ की सिद्धि के लिये ब्राह्मणो को मुख से उत्पन्न किया। इसके बाद क्षत्रियो को भुजाओ से वैश्य को जंघाओ से, और शूद्र को चरणो से रचा।


वशिष्ठ स्मृति चतुर्थ अध्याय मे सृष्टिक्रम का उल्लेख करते हुए वशिष्ठ जी कहते है।

- ब्राह्मणोऽस्य मुखमासीद्बाहू राजन्य: कृत:। उरु तदस्य यद्वैश्य: पद्भया ्ँ शूद्रो अजायत।।

गायत्रा छंदसा ब्राह्मणमसृजत। त्रिस्टुभा राजन्यं जगत्या वैश्यं न केनाचिच्छंदसा शूद्रमित्य संस्कार्यो विज्ञायते।।


गायत्री छंद से ब्राह्मण की सृष्टि है। त्रिष्टुभ छंद से क्षत्रिय की सृष्टि है। और जगती छंद से वैश्य की सृष्टि ईश्वर ने की है। इसलिये उपरोक्त वेदमंत्र से इनका संस्कार होता है।

तत्र मित्र न वस्तव्यं यत्र नास्ति चतुष्टयं । ऋणदाता च वैद्यश्च श्रोत्रियः सजला नदी ॥

मित्रो , जिस स्थान पर ऋणदाता, वैद्य, वेद पारंगत श्रोत्रिय ब्राह्मण, व जलयुक्त नदी न हो वहॉ नही बसना चाहिये।

जन्मना ब्राह्मणो ज्ञेयः | संस्कारै: द्विज उच्चते ||
विद्यया याति विप्रत्वम् | त्रिभि: श्रोत्रिय उच्चते ||१||.....


जाति शब्द ही जन्म से को सूचित करती है, ब्राह्म्ण व ब्राह्मणी के संयोग से उत्पन्न ब्राह्मण जाना जाता है, संस्कार से द्विज संज्ञा होती है, विद्या प्राप्त कर विप्र संज्ञा होती है। इन तीन प्रकार के गुणो से युक्त व्यक्ति को श्रोत्रिय कहा जाता है।

प्रस्तुत श्लोक अत्रि संहिता व पद्यपुराण मे वर्णित है।

पद्यपुराण- उत्तम ब्राह्मण व गायत्री मंत्र की महिमा शीर्षकाध्याय ब्रह्मा नारद संवाद श्लोक संख्या १३४ पर देखे।

स्कन्द पुराण के आधार पर ब्राह्मण आठ प्रकार के होते है-

अथ ब्राह्मणभेदांस्तवष्टौ विप्रावधारय ||
मात्रश्च ब्रारह्मणश्चैव श्रोत्रियश्च ततः परम् |
अनूचनस्तथा भ्रूणो ऋषिकल्प ऋषिमुनि: ||
इत्येतेष्टौ समुद्ष्टा ब्राह्मणाः प्रथमं श्रुतौ |
तेषां परः परः श्रेष्ठो विद्या वृत्ति विशेषतः ||

[ स्कन्द पुराण : महेश्वर खण्ड ]

"विद्या" "वंश" "वृत्त" की महिमा से ब्राह्मण 8 प्रकार के बताए गये हैं।
और इनमें से उत्तरोत्तर श्रेष्ठ हैं

१-मात्र २-ब्राह्मण
३-श्रोत्रिय ४-अनूचान
५- भ्रूण ६- ऋषिकल्प
७-ऋषि ८-मुनि


इन के लक्षण इस प्रकार हैं।
१-मात्र :-
जो ब्राह्मणों के कुल में उत्पन्न हुआ हो किन्तु उनके गुणों से युक्त न हो आचार और क्रिया से रहित हो वह "मात्र" कहलाता है।

२-ब्राह्मण :-
जो वेदों में पारंगत हो आचारवान हो सरल-स्वभाव शांतप्रकृति एकांतसेवी सत्यभाषी और दयालु हो वह "ब्राह्मण" कहा जाता है!

३-श्रोत्रिय :-
जो वेदों की एक शाखा छ: अंगों और श्रौत विधियों के सहित अध्ययन करके अध्ययन अध्यापन यजन-याजन दान और प्रतिग्रह इन छ: कर्मों में रत रहता हो उस धर्मविद ब्रह्मण को "श्रोत्रिय" कहते हैं।

४-अनूचान :-
जो ब्राह्मण वेदों और वेदांगों के तत्त्व को जाननेवाला, शुद्धात्मा, पाप रहित, शोत्रिय के गुणों से संपन्न, श्रेष्ठ और प्राज्ञ हो, उसे "अनूचान" कहा गया है।

५ भ्रूण :-
जो अनूचान के गुणों से युक्त हो, नियमित रूप से यज्ञ और स्वाध्याय करने वाला, यज्ञ शेष का ही भोग करने वाला और जितेन्द्रिय हो उसे शिष्टजनों ने "भ्रूण" की संज्ञा दी है!

६- ऋषिकल्प :-
जो समस्त वैदिक और लौकिक ज्ञान प्राप्त करके आश्रम व्यवस्था का पालन करे, नित्य आत्मवशी रहे, उसे ज्ञानीजन "ऋषिकल्प" नामसे स्मरण किया है।

७- ऋषि :-
जो ब्राह्मण ऊर्ध्वरेता, अग्रासन का अधिकारी, नियत आहार करनेवाला, संशय रहित, शहप देने और अनुग्रह करने में समर्थ और सत्य-प्रतिज्ञा हो, उसे "ऋषि" की पदवी दी गयी है।

८- मुनि :-
जो कर्मों से निवृत्त, सम्पूर्ण तत्त्व का ज्ञाता, काम-क्रोध से रहित, ध्यानस्थ, निष्क्रिय और शान्त हो, मिट्टी और सोने में समभाव रखता हो, उसे "मुनि" के नाम से सम्मानित किया है।

इस प्रकार ब्राह्मणों के 8 प्रकार भेद कहे गये हैं।
इस प्रकार से
"वंश विद्या और वृत्त" सदाचार के द्वारा उत्कर्ष को प्राप्त "त्रिशुक्ल" कहलाते हैं।
ये ही यज्ञ आदि में पूजित भी होते हैं।

जय जय सीताराम!!

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