हारीत ऋषि ने सृष्टिकर्म का वर्णन करते हुए हारीत स्मृति मे पुरुषसूक्त के श्लोक को स्पष्ट करते हुए कहा है कि-
Read more एक घडी,आधी घडी,आधी में पुनि आध,,,,,,,
तुलसी चरचा राम की, हरै कोटि अपराध,,,,,,।।
होलाष्टक प्रारंभ हो चुका है। प्राचीन मान्यता अनुसार इस अवधि में नकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव अधिक होता है। इस नकारात्मक ऊर्जा के प्रभाव को समाप्त करने के लिए ही होलिका का निर्माण किया जाता है।
Read moreअंतिम सांस गिन रहे जटायु ने कहा कि "मुझे पता था कि मैं रावण से नही जीत सकता लेकिन फिर भी मैं लड़ा, यदि मैं नही लड़ता तो आने वाली पीढियां मुझे कायर कहतीं"
Read moreवैराग्य किसीको भी और कभी भी हो सकता है; किन्तु इसके लिए भी ईश्वरकी कृपा होना आवश्यक है । वैरागियोंकी चर्चामें भर्तृहरिका नाम प्रमुखतासे लिया जाता है ।
Read moreश्री गुरु चरण सरोज रज निज मनु मुकुरु सुधारि ।
बरनऊं रघुवर बिमल जसु जो दायकु फल चारि ।।
ज्ञान हमेशा झुककर हासिल किया जा सकता है। एक शिष्य गुरू के पास आया। शिष्य पंडित था और मशहूर भी, गुरू से भी ज्यादा। सारे शास्त्र उसे कंठस्थ थे।
Read more1. ओम् लक्ष्मी वं, श्री कमला धरं स्वाहा। इस मंत्र की सिद्धि 1 लाख 20 हजार मंत्र जाप से होती है।
Read more'ऊं भूर्भुव: स्व:
तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि।
धियो यो न: प्रचोदयात्।। '
श्रीमद भागवत कथा श्रवण से जन्म जन्मांतर के विकार नष्ट होकर प्राणी मात्र का लौकिक व आध्यात्मिक विकास होता है। जहां अन्य युगों में धर्म लाभ एवं मोक्ष प्राप्ति के लिए कड़े प्रयास करने पड़ते हैं, कलियुग में कथा सुनने मात्र से व्यक्ति भवसागर से पार हो जाता है। सोया हुआ ज्ञान वैराग्य कथा श्रवण से जाग्रत हो जाता है।
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रामायण से 'पितृभक्ति', 'भ्रातृप्रेम', 'पातिव्रत्य धर्म', 'आज्ञापालन', 'प्रतिज्ञापूर्ति' तथा 'सत्यपरायणता' की शिक्षा प्राप्त होती है। से 'पितृभक्ति', 'भ्रातृप्रेम', 'पातिव्रत्य धर्म', 'आज्ञापालन', 'प्रतिज्ञापूर्ति' तथा 'सत्यपरायणता' की शिक्षा प्राप्त होती है।
वाल्मीकीय रामायण की कथावस्तु राम के चारों ओर अपना ताना-बाना बुनती है। राम इस महाकाव्य के नायक हैं और महर्षि वाल्मीकि ने उनके चरित्र को एक अतिमानव के रूप में चित्रित किया है।
शसिय रघुबीर बिबाहु जे सप्रेम गावहि सुनहि!
तिन्ह कहुँ सदा उछाहु मंगलायतन राम जसु!!
मंगलमय भगवान श्री सितारामविवाह श्री चक्रवर्ती महाराज दशरथ जी के राज महल श्री अयोध्या जी में आदि काल से लगभग सम्बत 1775 से चली आ रही है प्रत्येक वर्ष अगहन माह के शुक्ल पक्ष पंचमी तिथि को यह उत्सव मनाया जाता है।
1 संतानों की गलत माँग और हठ पर समय रहते अंकुश नहीं लगाया, तो अंत में आप असहाय हो जायेंगे = कौरव
2 आप भले ही कितने बलवान हो लेकिन अधर्म के साथ हो तो आपकी विद्या अस्त्र शस्त्र शक्ति और वरदान सब निष्फल हो जायेगा = कर्ण
3 संतानों को इतना महत्वाकांक्षी मत बना दो कि विद्या का दुरुपयोग कर स्वयंनाश कर सर्वनाश को आमंत्रित करे = अश्वत्थामा
मिथुन लग्न निर्मित राजयोग में कौन सा रत्न धारण करें कौन सा ना करें ||
सूर्य का रत्न माणिक अगर सूर्य एकादश में बैठा हो तो धारण करें अन्यथा नहीं ||
चंद्रमा का मोती ना धारण करें || मंगल का मुंगा ना धारण करें || बुध का रत्न पन्ना अगर बुध स्वग्रही उच्च मूल त्रिकोण में हो तो पन्ना जीवन पर्यंत धारण करें ||
18 दिन के युद्ध ने, द्रोपदी की उम्र को
80 वर्ष जैसा कर दिया था... शारीरिक रूप से भी और मानसिक रूप से भी !
उसकी आंखे मानो किसी खड्डे में धंस गई थी, उनके नीचे के काले घेरों ने उसके रक्ताभ कपोलों को भी अपनी सीमा में ले लिया था !
श्याम वर्ण और अधिक काला हो गया था... युद्ध से पूर्व प्रतिशोध की ज्वाला ने जलाया था और, युद्ध के उपरांत पश्चाताप की आग तपा रही थी !
रामायण से 'पितृभक्ति', 'भ्रातृप्रेम', 'पातिव्रत्य धर्म', 'आज्ञापालन', 'प्रतिज्ञापूर्ति' तथा 'सत्यपरायणता' की शिक्षा प्राप्त होती है। से 'पितृभक्ति', 'भ्रातृप्रेम', 'पातिव्रत्य धर्म', 'आज्ञापालन', 'प्रतिज्ञापूर्ति' तथा 'सत्यपरायणता' की शिक्षा प्राप्त होती है।
वाल्मीकीय रामायण की कथावस्तु राम के चारों ओर अपना ताना-बाना बुनती है। राम इस महाकाव्य के नायक हैं और महर्षि वाल्मीकि ने उनके चरित्र को एक अतिमानव के रूप में चित्रित किया है।
शसिय रघुबीर बिबाहु जे सप्रेम गावहि सुनहि!
तिन्ह कहुँ सदा उछाहु मंगलायतन राम जसु!!
मंगलमय भगवान श्री सितारामविवाह श्री चक्रवर्ती महाराज दशरथ जी के राज महल श्री अयोध्या जी में आदि काल से लगभग सम्बत 1775 से चली आ रही है प्रत्येक वर्ष अगहन माह के शुक्ल पक्ष पंचमी तिथि को यह उत्सव मनाया जाता है।
श्रीमद्भगवद्गीता हमारे प्राचीन भारत के अध्यात्मिक ज्ञान को दर्शाता है। शब्दभगवद(Bhagavad) का मतलब है भगवान और गीता(Gita) का गीत यानि की भगवन का गाया हुआ गीत। भगवान श्री कृष्ण ने महाभारत के समय कुरुक्षेत्र में भगवद गीता को अर्जुन के सामने समझाया था। भगवद गीता में कुल 700 संस्कृत छंद, 18 अध्यायों के भीतर निहित है जो की 3 बर्गों में विभाजित है, प्रत्येक में 6 अध्याय हैं।
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